श्री साई और गुरुचरित्र अध्याय १४। gurucharitra adhyay 14

Ram Pagare
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गुरुचरित्र अध्याय 14 (gurucharitra adhyay 14)एक महत्वपूर्ण अध्याय है जो हमें गुरु की महत्ता, उनके आदर्श, और शिष्य की गुरु के प्रति भक्ति के बारे में सिखाता है। साई बाबा की आरतियोमे एक श्री गुरु आरती भी होती हे तो उसी वजह से गुरुचरित्र साई भक्तिमेभी काफी मायने रखता हे। यह अध्याय हमें अपने जीवन में एक सच्चे गुरु के आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा देता है। इसलिए, हमें गुरुचरित्र अध्याय 14 का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना चाहिए और इसके उपदेशों को अपने जीवन में अमल में लाना चाहिए।

गुरुचरित्र अध्याय १४ मराठी। gurucharitra adhyay 14 in marathi

श्री गणेशाय नमः I श्रीसरस्वत्यै नमः I श्रीगुरुभ्यो नमः I

नामधारक शिष्य देखा I विनवी सिद्धासी कवतुका I

प्रश्न करी अतिविशेखा I एकचित्ते परियेसा II १ II 

जय जया योगीश्वरा I सिद्धमूर्ति ज्ञानसागरा I 

पुढील चरित्र विस्तारा I ज्ञान होय आम्हांसी II २ II

उदरव्यथेच्या ब्राह्मणासी I प्रसन्न जाहले कृपेसी I 

पुढे कथा वर्तली कैसी I विस्तारावे आम्हांप्रति II ३ II 

ऐकोनि शिष्याचे वचन I संतोष करी सिद्ध आपण I 

गुरुचरित्र कामधेनु जाण I सांगता जाहला विस्तारे II ४ II 

ऐक शिष्या शिखामणि I भिक्षा केली ज्याचे भुवनी I 

तयावरी संतोषोनि I प्रसन्न जाहले परियेसा II ५ II 

गुरुभक्तीचा प्रकारु I पूर्ण जाणे तो द्विजवरू I 

पूजा केली विचित्रु I म्हणोनि आनंद परियेसा II ६ II 

तया सायंदेव द्विजासी I श्रीगुरू बोलती संतोषी I 

भक्त हो रे वंशोवंशी I माझी प्रीति तुजवरी II ७ II 

ऐकोनि श्रीगुरुचे वचन I सायंदेव विप्र करी नमन I 

माथा ठेवून चरणी I न्यासिता झाला पुनःपुन्हा II ८ II 

जय जया जगद्गुरू I त्रयमूर्तींचा अवतारू I 

अविद्यामाया दिससी नरु I वेदां अगोचर तुझी महिमा II ९ II 

विश्वव्यापक तूंचि होसी I ब्रह्मा-विष्णु-व्योमकेशी I 

धरिला वेष तूं मानुषी I भक्तजन तारावया II १० II 

तुझी महिमा वर्णावयासी I शक्ति कैंची आम्हांसी I 

मागेन एक आता तुम्हांसी I तें कृपा करणे गुरुमूर्ति II ११ II 

माझे वंशपारंपरी I भक्ति द्यावी निर्धारी I 

इहे सौख्य पुत्रपौत्री I उपरी द्यावी सद्गति II १२ II 

ऐसी विनंति करुनी I पुनरपि विनवी करुणावचनी I 

सेवा करितो द्वारयवनी I महाशूरक्रुर असे II १३ II 

प्रतिसंवत्सरी ब्राह्मणासी I घात करितो जीवेसी I 

याचि कारणे आम्हांसी I बोलावीतसे मज आजि II १४ II 

जातां तया जवळी आपण I निश्चये घेईल माझा प्राण I 

भेटी जाहली तुमचे चरण I मरण कैचे आपणासी II १५ II 

संतोषोनि श्रीगुरूमूर्ति I अभयंकर आपुले हाती I 

विप्रमस्तकी ठेविती I चिंता न करी म्हणोनिया II १६ II 

भय सांडूनि तुवां जावे I क्रुर यवना भेटावे I 

संतोषोनि प्रियभावे I पुनरपि पाठवील आम्हांपाशी II १७ II 

जंववरी तू परतोनि येसी I असो आम्ही भरंवसी I 

तुवां आलिया संतोषी I जाऊ आम्हीं येथोनि II १८ II 

निजभक्त आमुचा तू होसी I पारंपर-वंशोवंशी I 

अखिलाभीष्ट तू पावसी I वाढेल संतति तुझी बहुत II १९ II 

तुझे वंशपारंपरी I सुखे नांदती पुत्रपौत्री I 

अखंड लक्ष्मी तयां घरी I निरोगी होती शतायुषी II २० II 

ऐसा वर लाधोन I निघे सायंदेव ब्राह्मण I 

जेथे होता तो यवन I गेला त्वरित तयाजवळी II २१ II 

कालांतक यम जैसा I यवन दुष्ट परियेसा I 

ब्राह्मणाते पाहतां कैसा I ज्वालारूप होता जाहला II २२ II 

विमुख होऊनि गृहांत I गेला यवन कोपत I 

विप्र जाहला भयचकित I मनीं श्रीगुरूसी ध्यातसे II २३ II 

कोप आलिया ओळंबयासी I केवी स्पर्शे अग्नीसी I 

श्रीगुरूकृपा होय ज्यासी I काय करील क्रुर दुष्ट II २४ II 

गरुडाचिया पिलीयांसी I सर्प तो कवणेपरी ग्रासी I 

तैसे तया ब्राह्मणासी I असे कृपा श्रीगुरुची II २५ II 

कां एखादे सिंहासी I ऐरावत केवीं ग्रासी I 

श्रीगुरुकृपा होय ज्यासी I कलिकाळाचे भय नाही II २६ II 

ज्याचे हृदयीं श्रीगुरुस्मरण I त्यासी कैंचे भय दारुण I 

काळमृत्यु न बाधे जाण I अपमृत्यु काय करी II २७ II 

ज्यासि नांही मृत्यूचे भय I त्यासी यवन असे तो काय I 

श्रीगुरुकृपा ज्यासी होय I यमाचे मुख्य भय नाही II २८ II 

ऐसेपरी तो यवन I अन्तःपुरांत जाऊन I 

सुषुप्ति केली भ्रमित होऊन I शरीरस्मरण त्यासी नाही II २९ II 

हृदयज्वाळा होय त्यासी I जागृत होवोनि परियेसी I 

प्राणांतक व्यथेसी I कष्टतसे तये वेळी II ३० II 

स्मरण असे नसे कांही I म्हणे शस्त्रे मारितो घाई I 

छेदन करितो अवेव पाही I विप्र एक आपणासी II ३१ II 

स्मरण जाहले तये वेळी I धांवत गेला ब्राह्मणाजवळी I 

लोळतसे चरणकमळी I म्हणे स्वामी तूंचि माझा II ३२ II 

येथे पाचारिले कवणी I जावे त्वरित परतोनि I 

वस्त्रे भूषणे देवोनि I निरोप दे तो तये वेळी II ३३ II 

संतोषोनि द्विजवर I आला ग्रामा वेगवत्र I 

गंगातीरी असे वासर I श्रीगुरुचे चरणदर्शना II ३४ II 

देखोनिया श्रीगुरूसी I नमन करी तो भावेसी I

स्तोत्र करी बहुवसी I सांगे वृत्तांत आद्यंत II ३५ II 

संतोषोनि श्रीगुरूमूर्ति I तया द्विजा आश्वासिती I 

दक्षिण देशा जाऊ म्हणती I स्थान-स्थान तीर्थयात्रे II ३६ II 

ऐकोनि श्रीगुरुंचे वचन I विनवीतसे कर जोडून I 

न विसंबे आतां तुमचे चरण I आपण येईन समागमे II ३७ II 

तुमचे चरणाविणे देखा I राहो न शके क्षण एका I 

संसारसागर तारका I तूंचि देखा कृपासिंधु II ३८ II 

उद्धरावया सगरांसी I गंगा आणिली भूमीसी I 

तैसे स्वामी आम्हासी I दर्शन दिधले आपुले II ३९ II 

भक्तवत्सल तुझी ख्याति I आम्हा सोडणे काय नीति I 

सवे येऊ निश्चिती I म्हणोनि चरणी लागला II ४० II 

येणेपरी श्रीगुरूसी I विनवी विप्र भावेसी I 

संतोषोनि विनयेसी I श्रीगुरू म्हणती तये वेळी II ४१ II 

कारण असे आम्हा जाणे I तीर्थे असती दक्षिणे I 

पुनरपि तुम्हां दर्शन देणे I संवत्सरी पंचदशी II ४२ II 

आम्ही तुमचे गांवासमीपत I वास करू हे निश्चित I 

कलत्र पुत्र इष्ट भ्रात I मिळोनी भेटा तुम्ही आम्हां II ४३ II 

न करा चिंता असाल सुखे I सकळ अरिष्टे गेली दुःखे I 

म्हणोनि हस्त ठेविती मस्तके I भाक देती तये वेळी II ४४ II 

ऐसेपरी संतोषोनि I श्रीगुरू निघाले तेथोनि I 

जेथे असे आरोग्यभवानी I वैजनाथ महाक्षेत्र II ४५ II 

समस्त शिष्यांसमवेत I श्रीगुरू आले तीर्थे पहात I 

प्रख्यात असे वैजनाथ I तेथे राहिले गुप्तरूपे II ४६ II 

नामधारक विनवी सिद्धासी I काय कारण गुप्त व्हावयासी I 

होते शिष्य बहुवसी I त्यांसी कोठे ठेविले II ४७ II 

गंगाधराचा नंदनु I सांगे गुरुचरित्र कामधेनु I 

सिद्धमुनि विस्तारून I सांगे नामकरणीस II ४८ II 

पुढील कथेचा विस्तारू I सांगता विचित्र अपारु I 

मन करूनि एकाग्रु I ऐका श्रोते सकळिक हो II ४९ II

इति श्रीगुरूचरित्रामृते परमकथाकल्पतरौ श्रीनृसिंहसरस्वत्युपाख्याने सिद्ध-नामधारकसंवादे क्रुरयवनशासनं-सायंदेववरप्रदानं नाम चतुर्दशोSध्यायः II श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु II श्रीगुरुदेवदत्त II

गुरुचरित्र अध्याय १४ पीडीऍफ़। shri gurucharitra adhyay 14 pdf

श्री गुरुचरित्र अध्याय १४ पीडीऍफ़ फाइल shri gurucharitra adhyay 14 pdf को आप डाउनलोड करके उसे अपने नित्य नियम में इस्तेमाल करके आप श्री गुरु दत्ता दिगंबर के सानिध्य में जा सकते हे.

श्री गुरुचरित्र अध्याय 14 की महत्ता

गुरुचरित्र अध्याय 14 गुरु के आदर्शों और महत्व के बारे में जानकारी प्रदान करता है। यह अध्याय शिष्यों को उनके गुरू की महिमा और उनके अद्भुत गुणों के बारे में बताता है। गुरुचरित्र के इस अध्याय में विभिन्न कथाएं और उपदेश शामिल हैं जो हमें एक सच्चे गुरु के बारे में सिखाते हैं।

इसके साथ आप श्री साई सत्चरित्र हिंदी को भी पढ़ सकते हे।

Gurucharitra adhyay 14

क्या गुरू को सबसे उच्च माना जाता है?

जी हां, गुरू को सबसे उच्च माना जाता है। गुरु एक मार्गदर्शक, शिक्षक और प्रेरक होते हैं जो हमें ज्ञान, आदर्श और सत्य की ओर ले जाते हैं।

क्या गुरुचरित्र अध्याय 14 धार्मिक महत्व रखता है?

हां, गुरुचरित्र अध्याय 14 धार्मिक महत्व रखता है क्योंकि इसमें गुरू के आदर्शों और उनके महत्व का वर्णन किया गया है।

क्या गुरु को ईश्वर के रूप में माना जाता है?

हां, कई धार्मिक परंपराओं में गुरु को ईश्वर के रूप में माना जाता है।

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मैं liveshirdi.in का लेखक हूँ, जो साईं बाबा और शिरडी से जुड़ी सभी चीज़ों के लिए आपका एकमात्र संसाधन है। मेरा जुनून है कि मैं आपको साईं बाबा के जीवन, उनकी शिक्षाओं और शिरडी के इतिहास के बारे में जानकारी दूं। मैं आपको शिरडी की आध्यात्मिक यात्रा की योजना बनाने में, मंदिर के दर्शन के लिए टिप्स देने में और साईं बाबा के भक्तों के समुदाय से जुड़ने में मदद कर सकता हूं। मेरे लेखों के माध्यम से, मेरा लक्ष्य है कि आप शिरडी की पवित्र भूमि के करीब आएं और साईं बाबा के आशीर्वाद का अनुभव करें।
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